एकनाथ शिंदे की तबियत अचानक बिगड़ गई है, उन्हें अस्पताल लेजाया जा रहा है. वो खुद को जनता का सीएम बताकर महाराष्ट्र की राजनीति में असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है. सबसे बड़े दल के रूप में बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के सीएम पद के सबसे बड़े दावेदार माने जा रहे हैं. उधर, अजित पवार 3 मंत्रालयों पर अपनी नजर गड़ाए बैठे हैं.महाराष्ट्र में महायुति की महाजीत के पावर शेयरिंग को लेकर खींचतान मची हुई है।
बीजेपी महायुति में 132 सीटें जीतने के बाद जहां फूंक-फूंककर कदम रख रही है तो वहीं दूसरी तरफ सीएम एकनाथ शिंदे नई सरकार में सीएम पद के बदले शिवसेना की मजबूत स्थिति चाहते हैं। यही वजह है कि महायुति में महाजीत के बाद जश्न के बजाए जोरआजमाइश जारी है। पिछले नौ दिनों के घटनाक्रम में यह साफ हो चुका है कि अगला मुख्यमंत्री बीजेपी से होगा? लेकिन चेहरा कौन होगा? इसका फैसला बुधवार को विधायक दल की बैठक में होने की उम्मीद है, लेकिन इस बीच सवाल खड़ हो रहा है जिन एकनाथ शिंदे को जून 2022 में बीजेपी ने सीएम की कुर्सी दी थी अब उन्हें अपनी कुछ मांगों के लिए प्रेशर पॉलिटिक्स क्यों करनी पड़ रही है?
शिवसेना की तरफ से ताजा बयान में दीपक केसरकर ने कहा है कि एकनाथ शिंदे की लीडरशिप को माना जाना चाहिए।महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रख रहे विश्लेषकों का कहना है कि पॉलिटिक्स में फैसले जरूरत के हिसाब से लिए जाते हैं। जून, 2022 में एकनाथ शिंदे की अहमियत कहीं अधिक थी। बीजेपी ने उद्धव ठाकरे को खत्म करने के लिए शिंदे को सीएम की कुर्सी सौंपी थी, लेकिन अब 2024 के चुनावों में स्थिति बदल गई है
बीजेपी के पास कही ज्यादा सीटें हैं तो वहीं महायुति में एक और घटक दल की मौजूदगी है जो बीजेपी के साथ बिना किसी शर्त के साथ है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अजित पवार द्वारा देवेंद्र फडणवीस के साथ खड़े होना और बीजेपी के हर फैसले को समर्थन देने से शिंदे की स्थिति महायुति में कमजोर हुई है।