क्या कश्मीर में फिर से शुरू हो रहा है ‘पलायन’?
पहलगाम आतंकी हमला: गोली मारने से पहले कलमा, पैंट उतरवाना और पहचान की हत्या
22 अप्रैल की दोपहर, पहलगाम की खूबसूरत वादियों में जो हुआ, वो सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं था — वो एक खौफनाक संदेश था। ऐसा लगा जैसे इतिहास फिर से अपना सबसे डरावना चेहरा दिखाने लौट आया है।
पहचान से पहले जान
मीडिया रिपोर्ट्स और प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, हमलावर सेना की वर्दी और चेहरे पर नकाब पहने हुए थे। उन्होंने सैलानियों को रोका, नाम पूछा, पहचान पत्र देखे और पैंट तक उतरवाई। फिर कहा — “कलमा पढ़ो।”
जो पढ़ पाया, वह बच गया।
जो नहीं पढ़ पाया, उसे गोली मार दी गई।
पुणे से आईं पर्यटक आसावरी ने बताया कि उनके सामने उनके पिता को तीन गोलियां मारी गईं — सिर्फ इसलिए कि वो हिंदू थे और ‘कलमा’ नहीं पढ़ पाए। CNN-News18, AajTak और PTI जैसे मीडिया संस्थानों ने इस तरह की कई गवाहियों की पुष्टि की है।
क्या ये आतंक नहीं, एक धर्मयुद्ध जैसा इशारा है?
इस हमले का मकसद सिर्फ मौत नहीं था — यह डर फैलाना था, और वो भी चुनकर — धार्मिक पहचान के आधार पर।
सवाल अब यह नहीं कि हमला क्यों हुआ। सवाल यह है कि क्या यह उसी ‘पलायन’ का दूसरा अध्याय है, जिसने 1990 में कश्मीर को खून और आंसुओं में डुबो दिया था?
एक बार फिर इतिहास लौट रहा है?
कभी तलवार से बढ़ा था वर्चस्व
1338 में शुरू हुआ शाहमीर वंश, और फिर सुल्तान सिकंदर का शासन — इतिहासकार कहते हैं, उस दौर में हिंदुओं को जबरन इस्लाम कबूल करने को मजबूर किया गया। मंदिर तोड़े गए, सोने-चांदी की मूर्तियां पिघलाई गईं।
जो नहीं झुके, उन्हें घाटी छोड़नी पड़ी।
1990 का भयावह दौर
जब लाउडस्पीकर से रात में नारे गूंजते थे — “ए काफिरो, कश्मीर छोड़ दो।”
जब माँ को अपनी बेटी को बचाने के लिए चाकू उठाना पड़ा।
जब मस्जिद से नाम लिया जाता था — और अगले दिन वो नाम किसी की लाश बन जाता था।
सर्वानंद प्रेमी की लाश लटकी मिली थी
उनके बेटे के साथ। हाथ-पैर तोड़े गए, चमड़ी उधेड़ी गई, बाल उखाड़ दिए गए।
अब फिर से वही डर?
आतंकियों ने एक बार फिर नाम पूछे, धर्म देखा और फिर गोली चलाई।
यह हमला किसी सेना या नेता पर नहीं था — ये हमला उन आम हिंदू सैलानियों पर था जो वादियों की खूबसूरती देखने आए थे। यह सिर्फ एक जघन्य हत्या नहीं, यह एक “संदेश” था — “यहाँ हिंदुओं का स्वागत नहीं है।”
DGP रहे एसपी वैद कहते हैं:
“यह हमला कश्मीर में दोबारा डर का माहौल बनाने के लिए किया गया है। टूरिज्म और लोकल बिज़नेस को बर्बाद करने की कोशिश है।”
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी साफ कहते हैं:
“आतंकियों ने नाम पूछकर मारा — यह सिर्फ हत्या नहीं, यह धार्मिक सफाया है।”
क्या फिर लौटेगा 1990 जैसा पलायन?
आर्टिकल 370 हटने के बाद एक उम्मीद जगी थी कि कश्मीर में अमन लौटेगा। विधानसभा चुनाव भी हुए।
पर अब, इस हमले के बाद कई हिंदू टूरिस्ट कश्मीर जाने से डरने लगे हैं। लोग सवाल पूछ रहे हैं — क्या हम फिर उसी जगह लौट आए हैं, जहाँ से चले थे?
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा था:
“कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीर, कश्मीर नहीं है। एक दिन ऐसा आएगा जब वहां का बहुसंख्यक समाज खुद अफसोस करेगा।”
लेकिन अफसोस के लिए किसके पास वक्त है, जब गोलियों की आवाज़ फिर से घाटी में गूंज रही हो?


