Shaktikanta Das: सफल या असफल… कैसे RBI गवर्नर के रूप में याद किए जाएंगे शक्तिकांत दास?

 नई दिल्ली।
 ‘शक्तिकांत दास के जाने से अनिश्चितता आई है, क्योंकि उनके कार्यकाल में ऐसी नीतियां अपनाई गई थीं, जिनसे रुपये में बड़ी गिरावट नहीं आई।’ विदेशी मुद्रा व्यापारियों की यह पहली प्रतिक्रिया थी, आरबीआई के पूर्व गवर्नर शक्तिकांत दास को सेवा विस्तार न मिलने पर। इससे काफी हद तक शक्तिकांत दास के नीतिगत नजरिए की झलक मिलती है। उनका सबसे अधिक फोकस महंगाई को काबू करने, रुपये को मजबूत रखने और वित्तीय स्थिरता बढ़ाने पर रहा।

दूसरे सबसे लंबे कार्यकाल वाले आरबीआई गवर्नर

अगर शक्तिकांत दास को सेवा विस्तार मिलता, तो उनके नाम सबसे लंबे वक्त तक आरबीआई गवर्नर का रिकॉर्ड दर्ज हो जाता है। दास 2,190 दिन तक केंद्रीय बैंक के प्रमुख रहे। आरबीआई चीफ के तौर पर इससे ज्यादा वक्त सिर्फ बेनेगल रामा राव ने बिताया। उनका कार्यकाल 2,754 दिनों का था। वह जुलाई 1949 से जनवरी 1957 तक आरबीआई गवर्नर रहे थे।

क्या ब्याज दरों पर दास का रवैया सबसे सख्त था?

दास की यह छवि उनके कार्यकाल के आखिरी दौर में बन गई थी। उन्होंने महंगाई को काबू में रखने के लिए फरवरी 2023 से दिसंबर 2024 तक ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं की। यहां तक कि दिसंबर की एमपीसी से पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण समेत तीन केंद्रीय मंत्रियों ने ब्याज दरों में कटौती का सुझाव दिया। लेकिन, दास की अगुआई वाली मॉनेटरी कमेटी ने ब्याज दरों को लगातार 11वीं बार जस का तस रखा।
इससे दास की छवि बन गई कि वह ऊंची ब्याज दर रखने के हिमायती हैं। ऐसे में यह याद करना जरूरी है कि खुद दास ने कोविड के शुरुआती दौर में ब्याज दरें बढ़ाने से मना कर दिया था। उस वक्त महंगाई दर आरबीआई के टारगेट से काफी ऊपर थी। जब कोरोना पीक पर था, तो आरबीआई ने अक्टूबर 2021 की एमपीसी मीटिंग में मौद्रिक नीति में ढील भी दी। उस वक्त दास ने कहा था कि हम किसी रूलबुक के गुलाम नहीं हैं।

दास की बतौर RBI गवर्नर उपलब्धियां क्या रहीं?

  • शक्तिकांत दास 2023 और 2024 में लगातार दो बार दुनिया के टॉप सेंट्रल बैंकर चुने गए। यह अवॉर्ड अमेरिका के वॉशिंगटन D.C. में ग्लोबल फाइनेंस देती है। उन्हें महंगाई पर कंट्रोल, इकोनॉमिक ग्रोथ, करेंसी में स्टेबिलिटी और ब्याज दरों पर वाजिब नियंत्रण के लिए अवॉर्ड मिला था।
  • दास ने कोरोना महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध, मध्य-पूर्व में तनाव के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर रखा। कोरोना के दौरान दास के अगुआई में RBI ने लिक्विडिटी और एसेट क्वालिटी को बनाए रखने के लिए खास प्रयास किए। कई आर्थिक नीतियों को बेहतर तरीके से लागू किया गया।
  • दास ने यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक को दिवालिया होने से बचाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने IL&FS संकट का भी काफी अच्छे तरीके से सामना किया। उन्होंने दूसरी नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों (NBFC) का भी IL&FS जैसा हाल होने से बचाने के लिए सख्त कदम उठाए।
  • दास ने आर्थिक तरक्की को बढ़ावा देने के लिए रेपो रेट में जरूरी बदलाव किया 2018 में जब दास ने कार्यभार संभाला था, तब रेपो रेट 6.50 फीसदी पर थी। दास इसे घटाकर 4 फीसदी पर ला दिया। बाद में महंगाई को कंट्रोल करने के लिए इसे फिर से बढ़ाकर 6.50% कर दिया।
  • दास के कार्यकाल के दौरान बैंकों का नॉन-परफॉर्मिंग एसेट यानी NPA सितंबर 2024 तक 2.59 फीसदी के स्तर पर आ गया। यह दिसंबर 2018 में यह 10.38 फीसदी के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर था। यह दास से पहले के आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल और रघुराम राजन के लिए बड़ी चुनौती थी।
  • दास के कार्यकाल में बैकों के बिजनेस में भी काफी सुधार हुआ। वे घाटे से मुनाफे में आ गए। बैंकों को वित्त वर्ष 2023 में 2.63 लाख करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ। वहीं. वित्त वर्ष 2018 में बैंक 32,400 करोड़ रुपये के घाटे में थे।

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