CRR कटौती से ब्याज दरों में नरमी के दौर की शुरुआत, बैंकों को कर्ज बांटने में होगी आसानी

सस्ते होम लोन, आटो लोन, पर्सनल लोन का इंतजार करने वालों को अभी थोड़ा इंतजार करना होगा। मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से दो सदस्यों ने ब्याज दरों में कटौती के लिए रेपो रेट को घटाने का समर्थन किया, लेकिन चार सदस्यों के विरोध की वजह से ऐसा नहीं हो सका। लेकिन आरबीआई गवर्नर ने बैठक के बाद नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) की दर को 4.50 फीसद से एकमुश्त 0.50 फीसद कम करके 4 फीसद करने का ऐलान किया।
इससे बैंकों के पास 1.60 लाख करोड़ रुपये की राशि अतिरिक्त उपलब्ध होगी, जिसका इस्तेमाल वह कर्ज वितरित करने में कर सकेंगे। इससे आम जनता व उद्योग जगत को पर्याप्त कर्ज मिल सकेगा। यह आर्थिक विकास में भी मदद करेगा और ब्याज दरों को स्थिर रखने में भी सहायक होगा। इसे ब्याज दरों में कटौती के शुरुआत के तौर पर भी देखा जा रहा है।

एक हफ्ते पहले जारी सरकारी आंकड़ों में वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर के घट कर 5.4 फीसद रहने की बात सामने आई थी। इसके बाद उम्मीद की जा रही थी कि आरबीआई ब्याज दरों को घटा कर विकास दर को आगे बढ़ाने की कोशिश करेगा। हाल के दिनों में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी की तरफ से ब्याज दरों में कटौती की परोक्ष तौर पर मांग भी की गई थी।
आरबीआई गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में रेपो रेट (वह दर जिस पर आरबीआई बैंकों को फंड देता है, अल्पकालिक अवधि के कर्ज की दरों को तय करने में इसकी भूमिका अहम होती है) को 6.50 फीसद पर ही रखना तय हुआ। समिति की यह लगातार 11वीं बैठक है जिसमें ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
डॉ. दास ने साफ संकेत दिया कि महंगाई को केंद्रीय बैक हल्के में नहीं ले सकता, उन्होंने कहा कि, “महंगाई जब बढ़ जाती है तो उससे उपभोक्ताओं के हाथ में खर्च करने के लिए कम पैसा बचता है और इसका नकारात्मक असर सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की ग्रोथ रेट पर भी होता है। अभी मौसम की अनिश्चितता, भूराजनीतिक हालात और वित्तीय बाजार की अस्थिरता से मंहगाई पर उल्टा असर पड़ना संभव है।
उन्होंने कहा कि एमपीसी इस बात को मानता है कि महंगाई को स्थिर रख कर ही तेज विकास की नींव रखी जा सकती है। लेकिन एक स्तर के बाद अगर विकास की रफ्तार नीचे आती है तो उसे नीतिगत मदद (ब्याज दरों में कटौती) भी दी जा सकती है।
यहीं वजह है कि पहले जहां सालाना महंगाई की दर के 4.6 फीसद रहने का अनुमान आरबीआई ने लगाया था जिसे अब बढ़ा कर 4.8 फीसद कर दिया है। महंगाई की इस स्थिति के लिए खाद्य उत्पादों में महंगाई को ही जिम्मेदार ठहराया गया है। डॉ. दास ने कहा भी है कि, “आगे जब खाने पीने की चीजों में कमी होगी तो महंगाई की स्थिति भी ठीक हो जाएगी।”
अगले वित्त वर्ष 2025-26 की पर ही तिमाही में ही खुदरा महंगाई की दर के चार फीसद के करीब पहुंचने की बात अब कही गई है। इसके साथ ही आरबीआइ ने सालाना आर्थिक विकास दर के अनुमान को 7.2 फीसद से घटा कर 6.6 फीसद कर दिया है। वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट के 6.9 फीसद व दूसरी तिमाही में 7.3 फीसद रहने की बात कही गई है।

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