पहलगाम की चीखें: आतंकियों के खौफ से भारतीय सेना को भी आतंकी समझ रोने लगे टूरिस्ट

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पहलगाम की चीखें: आतंकियों के खौफ से भारतीय सेना को भी आतंकी समझ रोने लगे टूरिस्ट

वीडियो में कैद हुआ खौफ: महिला गिड़गिड़ाई – ‘मेरे बच्चे को मत मारना’

22 अप्रैल, 2025 — यह तारीख अब कश्मीर के पहलगाम की यादों में हमेशा के लिए दर्ज हो गई है।
यह वह दिन था, जब इंसानियत को आतंक के सामने लाचार होते देखा गया।
जब एक माँ अपने बच्चे को बचाने के लिए सेना से भी रोते हुए कह रही थी, “मेरे बच्चे को कुछ मत करना।”

लेकिन इस बार डर की वजह कुछ और थी। यह सिर्फ गोलियों की आवाज नहीं थी, बल्कि वह भ्रम था जो आतंकियों ने जानबूझकर फैलाया — वे भारतीय सेना की वर्दी में आए थे। नकाब पहने हुए थे। आम नागरिकों को लगा कि वे मदद करने वाले हैं, लेकिन असल में वे मौत लेकर आए थे।

26 लोगों की लाशें, और एक वीडियो जो रुला दे

हमले के तुरंत बाद जो वीडियो सामने आया, उसमें चारों ओर चीख-पुकार सुनाई देती है। एक महिला ज़ोर-ज़ोर से रो रही है। उसके आसपास लाशें पड़ी हैं, खून के धब्बे हैं, और वह एक सैनिक के सामने हाथ जोड़ती है — “हमने कुछ नहीं किया, मेरे बच्चे को मत मारो।”

यह सैनिक असल में भारतीय सेना का जवान था, जो घटनास्थल पर बाद में पहुंचा था।
लेकिन उस पल में उस महिला को नहीं पता था कि वो जवान है या उसी जैसे वर्दी में कोई और आतंकी।
यह भ्रम, यह भय — आतंकियों का सबसे क्रूर हथियार बन गया था।

सेना की वर्दी पहनकर हमला, टूरिस्ट को बनाया निशाना

हमलावरों ने पहलगाम में पर्यटकों की भीड़ के बीच घुसकर फायरिंग शुरू की।
उन्होंने सेना की वर्दी पहन रखी थी ताकि टूरिस्टों को शक न हो।
सबसे पहले उन्होंने टूरिस्टों से नाम पूछे, पहचान पत्र चेक किए। फिर उन्हें कलमा पढ़ने को मजबूर किया। जो नहीं पढ़ पाया, उसे गोली मार दी गई।

एक चश्मदीद ने बताया कि उनके सामने उसके पिता को इसलिए मार दिया गया क्योंकि वे हिंदू थे।
कुछ पुरुषों की पैंट तक उतरवाई गई, ताकि धर्म का ‘सबूत’ मिल सके।
फिर गोली की आवाज आई — और किसी का बेटा, किसी का पति, किसी का पिता हमेशा के लिए चला गया।

पलायन की आहट?

इस हमले के बाद सिर्फ खून नहीं बहा, विश्वास भी टूटा।
पहलगाम जैसे टूरिस्ट हब में इस तरह की बर्बरता ने न सिर्फ वहां आने वाले लोगों को झकझोरा है, बल्कि स्थानीय मुस्लिमों को भी शर्मसार किया है।

यह हमला केवल इंसानों पर नहीं, भारत के पर्यटन, भरोसे और सामाजिक सौहार्द पर हमला था।

कई टूरिस्ट जो वहां बचे रह गए, उन्हें डर था कि अब वे कभी सुरक्षित घर लौट पाएंगे या नहीं।
एक बुजुर्ग महिला ने कहा, “हम तो कश्मीर की वादियां देखने आए थे, मौत देख ली।”

सरकार की प्रतिक्रिया और आगे की राह

घटना के बाद केंद्र और राज्य सरकार दोनों अलर्ट पर हैं।
DGP और केंद्रीय एजेंसियां मामले की जांच में जुटी हैं।
लेकिन सवाल उठता है — क्या यह हमला अकेला था? या यह फिर से उस ‘पलायन’ की तैयारी है, जैसा 1990 में कश्मीरी पंडितों के साथ हुआ था?

रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि ये हमला टूरिज्म को नुकसान पहुंचाने, कश्मीर में डर का माहौल बनाने और हिंदुओं के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए किया गया है।

आखिरी सवाल: अब किस पर भरोसा करें?

जब वर्दी भी भरोसा नहीं दिला पाती, तो आम नागरिक किसे दोस्त समझे, किसे दुश्मन?
जब एक माँ अपने बच्चे को भारतीय सेना के जवान से भी बचाने की गुहार लगाती है — तो समझिए कि आतंक ने सिर्फ जान नहीं ली, लोगों के दिलों से भरोसा भी छीन लिया है।

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