उत्तराखंड: अपना सा एक गांव
उत्तरकाशी स्थित सुपीन घाटी के छोटे-छोटे गांव इन दिनों अनुपम आभा बिखेर रहे हैं। सूरज की रोशनी से सुनहरी हुई बर्फ का यह आकर्षक आमंत्रण आप भला कैसे ठुकरा सकते हैं। आइए, शैलेंद्र गोंदियाल की मदद से इसे विस्तार से समझते हैं…
नैटवाड़ से शुरू करें सैर
सुपीन घाटी की सैर के लिए हम देहरादून से मसूरी, पुरोला व मोरी होते हुए 190 किमी की दूरी तय कर नैटवाड़ पहुंचते हैं। सुपीन घाटी नैटवाड़ से ही शुरू होती है। इस घाटी का नामकरण सुपीन नदी के नाम पर हुआ है। नैटवाड़ से दस किमी की दूरी पर पहला पर्यटक गांव सांकरी-सौड़ है। सिदरी और कोट गांव भी तीन किमी के फासले पर हैं। गांव सड़क से जुड़े हैं और हर घर के आंगन से प्रसिद्ध स्वार्गारोहणी चोटी और हर की दून घाटी का विहंगम नजारा दिखाई देता है। समुद्रतल से 2,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सांकरी-सौड़, सिदरी व कोट गांव केदारकांठा (3,810 मीटर) के बेस कैंप भी हैं। केदारकांठा के लिए करीब 11 किमी का पैदल ट्रेक भी यहीं से शुरू होता है। शीतकाल और अंग्रेजी नववर्ष के अवसर पर पिछले कुछ वर्षों से युवा पर्यटक केदारकांठा में सूर्योदय की छटा देखने को पहुंच रहे हैं।
रस्सियों में गुंथा रोमांच
सांकरी से चार किमी की दूरी पर जूड़ाताल जेन जी की पसंदीदा जगह है। यहां रस्सियों के सहारे ताल को आर-पार करने सहित रोप क्लाइंबिंग, रैपलिंग जैसी साहसिक खेल गतिविधियां संचालित होती हैं। जूड़ाताल से तीन किमी की दूरी पर तालखेत्रा (2,800 मीटर) केदारकांठा का एडवांस कैंप है। केदारकांठा की सैर के बाद फिर से सुपीन घाटी की ओर बढ़ते हैं, लेकिन पहले जखोल गांव में थोड़ा सुस्ता लें।
सांकरी से पांच किमी की दूरी पर जखोल को सितंबर 2024 में राष्ट्रीय स्तर पर साहसिक पर्यटन श्रेणी का सर्वश्रेष्ठ पर्यटन ग्राम पुरस्कार मिल चुका है। यहां 100 से अधिक होम स्टे हैं। हर वर्ष शीतकाल में 12 दिन तक चलने वाला देव उत्सव (देवगति) जखोल की खूबसूरती को बढ़ा देता है। जखोल के पास साहसिक पर्यटन के लिए तीन किमी की दूरी पर सरुताल ट्रेक, चार किमी लंबा लेका टाप, सात किमी लंबा विजय टाप, 18 किमी लंबा भराड़सर व देवक्यारा ट्रेक हैं।
संस्कृति में रचा-बसा आतिथ्य
सुपीन घाटी को प्रकृति ने जितनी फुरसत से सजाया है, यहां के लोक ने भी अपनी पौराणिक संस्कृति में समृद्धि की उतनी ही मिठास घोली है। यहां पर्यटकों का स्वागत-सत्कार पारंपरिक वाद्य यंत्रों को बजाकर किया जाता है। हर घर और होम स्टे में दिन के अनुसार सोंधी महक वाली गंदरायण (चोरु) की चाय, रामदाने का हलवा, मंडवे और रामदाने की रोटी, कंडाली की सब्जी, लाल छेमी (राजमा) की दाल, पहाड़ी आलू के गुटके, लाल चावल, फाफरे की रोटी, भेतू की खीर (भेत्वाड़ी), मंडुवा-चावल के आटे के पकवान (जग्लाड़ी), चौलाई उबालकर बनाया जाने वाला पकवान (लिमड़ी), स्थानीय मशरूम, दाल के पकौड़े, मीठी रोटी और गाय के घी का स्वाद भी लाजवाब है। जब ग्रामीण पारंपरिक पोशाक में लोकनृत्य करते हैं तो पर्यटक स्वयं को थिरकने से नहीं रोक पाते!
हिमाचल प्रदेश: मोड़ पर हिम तेंदुआ
हिमाचल में कई पर्यटन स्थल हैं लेकिन यहां स्थित स्पीति घाटी में यात्रा का असली रोमांच ही तब शुरू होता है जब आप ट्रैकिंग, कैंपिंग और साहसिक खेलों का आनंद लेने लगते हैं। हंसराज सैनी से जानिए क्या-क्या छिपा है यहां जेन जी के लिए…
हिमाचल प्रदेश में कई पर्यटन स्थल हैं, लेकिन इनमें स्पीति घाटी की यात्रा आपको रोमांचित कर देगी। यह बात ट्रैकिंग, कैंपिंग और साहसिक खेलों में रुचि रखने वाले युवाओं के लिए तो शत प्रतिशत सही है। यह घाटी अपने निर्जन पहाड़ों, बर्फ से ढकी चोटियों, प्राचीन बौद्ध मठ ‘कीहगोंपा’ व ग्यू की सैकड़ों वर्ष पुरानी ममी के लिए रहस्यपूर्ण ढंग से प्रसिद्ध है। यहां ऊंचे पहाड़ी इलाकों में ट्रेकिंग करते समय आपको ताजगी का अनुभव होगा और हां, यहां बर्फीली ढलानों और गहरी घाटियों में अक्सर हिम तेंदुआ दिख जाता है। किस्मत अच्छी है तो ब्लू शीप और आइबैक्स भी देखने को मिलेंगे। यहां आइस हाकी व स्नो फेस्टिवल किसी वैश्विक आकर्षण से कम नहीं है। स्नो फेस्टिवल के दौरान यहां की 13 पंचायतों के हर गांव में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन होता है। आइस हॉकी के मैच भी माह भर देखने को मिलते हैं।
एक झील चांद की है
स्पीति की यात्रा के दौरान यहां के प्राकृतिक दृश्य आपको शांति का अनुभव कराएंगे। यहां की चंद्रताल झील अपनी नीली-हरी रंगत के लिए प्रसिद्ध है। सड़कों पर चलते हुए आपको चारों ओर पहाड़ी जीव-जंतुओं, फूलों व दूर-दूर तक फैले नजारों का आनंद मिलेगा। यहां की मिट्टी से बने सामान, हस्तशिल्प, ऊन से बने कपड़े और प्राकृतिक खाद्य पदार्थ जैसे कि ताजा फल, जड़ी-बूटियां और औषधीय उत्पाद आपकी यात्रा को और भी यादगार बना देंगे।
मन छूती मिट्टी की महक
शहरी जीवन की भागदौड़ से दूर, प्रकृति के करीब तथा एक सच्चे देहाती अनुभव की तलाश में हैं तो स्पीति आदर्श स्थान है। यहां गांवों में आपको मिट्टी से बने घरों की कतार देखने को मिलेगी। यह घर न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि इनका निर्माण भी यहां की संस्कृति और परंपराओं का हिस्सा है। मिट्टी के घर गर्मियों में ठंडे और सर्दियों में गर्म रहते हैं, जिससे इनका उपयोग कई पीढ़ियों से किया जा रहा है। इन होम स्टे में ठहरने का अनुभव अनूठा होता है। थुकपा, एक प्रकार का गर्म और स्वादिष्ट नूडल सूप, यहां का प्रमुख व्यंजन है। इसके अलावा चूरम, मोमोज, छांग, टिंगमो, छुरपी यानी याक के दूध का पनीर, फिरनी व सत्तू से बने पकवान भी आपको तृप्त कर देंगे। जनजातीय खानपान की खासियत यह है कि इसमें स्वाद और खुशबू से भरी हुई स्थानीय सामग्री शामिल होती है, जो आपके मन को छू जाती है!
जम्मू-कश्मीर: नागों की धरती
बर्फ से ढकी वादियों के बीच रोमांच के सफर पर जाना चाहते हैं तो बिना संकोच के भद्रवाह चले आइए। नवीन नवाज के मुताबिक जेन जी के लिए भद्रवाह कुछ अनसुना सा हो सकता है, लेकिन जिन्होंने इंटरनेट खंगालकर फिल्म ‘नूरी’ देखी है, वो बता सकते हैं कि प्राकृतिक सौंदर्य से ओत-प्रोत भद्रवाह स्विट्जरलैंड को मात देता है…
मौसम साफ है तो मुस्कुराइए कि आप भद्रवाह के आस-पास जंगल या पहाड़ पर ट्रैकिंग के लिए जा सकते हैं। पदरी धार और जय घाटी के मैदान, छत्तरगला और गुलडंडा के बर्फ की चादर में ढके पहाड़ तथा ग्लेशियर आपको अपनी तरफ खींचते नजर आएंगे। अंग्रेजी नववर्ष के बाद फरवरी तक यहां ‘हिमउत्सव’ में आपको लोक संस्कृति को समझने का अवसर भी मिलेगा!
आ गए हम कहां
भद्रवाह से करीब 32 किलोमीटर दूर है जय घाटी। इस घाटी को जय नाला दो भागों में विभाजित करता है। जय नाला आगे कलगोनी नदी में गिरता है। कलगोनी के झरने और चट्टानें कुशल पर्वतारोहियों के लिए भी चुनौती पेश करती हैं। इसके पूर्व में भालेसा घाटी पर्यटकों के लिए खुली है। यहां बर्फ से पटे मैदान में आगंतुक हफ्तों तक अपने टेंट लगा सकते हैं और हार्स-राइडिंग, ट्रैकिंग का आनंद ले सकते हैं। भद्रवाह से 41 किलोमीटर दूर भद्रवाह-चंबा राष्ट्रीय राजमार्ग पर पदरी टाप स्थित है। सर्दियों में स्नो-स्कीइंग और गर्मियों में पैराग्लाइडिंग जैसे जेन जी के पसंदीदा साहसिक खेलों के लिए यह आदर्श है।
वासुकी का वास
अगर आप आध्यात्मिक रुचि वाले युवा हैं तो आपको लगेगा कि बिल्कुल सही स्थान पर आए हैं। भद्रवाह कस्बे के ठीक सामने पहाड़ पर कैलास कुंड है। इस कुंड की परिक्रमा में दो घंटे का समय लगता है। मान्यता है कि भगवान शिव वासुकी नाग के लिए यह कुंड छोड़कर स्वयं कैलाश पर्वत पर प्रस्थान कर गए थे। दरअसल, भद्रवाह में चार वासुकी नाग मंदिर हैं। एक गाठा में, दूसरा नाल्थी में, तीसरा भेजा में और चौथा भद्रवाह में!